Tuesday, March 19, 2019

वास्तविक अनुभव, जो कि कभी मिटाया नहीं जा सकता |

1.Real Feeling That can't be erased ever...
In Hindi Version:-


नमस्कार आप सभी को,
एक बार हमारा कम्पटीशन चल रहा था हम क्या सोचते हैं अथवा अपने देश समाज आदि के बारे में क्या विचार रखते हैं .
इस बात को एक कहानी या स्क्रिप्ट के माध्यम से लिख कर प्रकट करें |
वेसे तो मेरे मन में अनेकों एसी बातें चल रही थीं जिसपर मै गहराई से बहुत कुछ लिख सकता था परन्तु इन सब चीजों को
छोड़ते हुए मैने कहा कि क्यों न अपने ही बारे में वास्तविक घटना का उल्लेख किया जाए, यह अग्रिम वृतांत जो मै लिखने जा रहा हूँ , पूरी तरह से वास्तविक है जिसका उद्द्येश्य लोगों का आवेश में आकार आत्महत्या करने से बचाना है, क्योंकि आज से चार साल पहले ही मै ये दुनिया छोड़ चुका होता, यदि मै आज इस दुनिया में जीवित हूँ तो इस कहानी की अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका है|
३० मार्च सन १९९७ में मै इस दुनिया में आया , ऐसा मैने सुना है, दो चार या लगभग पांच वर्ष तो बाल्यावस्था में बीता जिसके बारे में मुझे कुछ ज्यादा नहीं पता , हाँ लगभग सात या आठ वर्ष की अवस्था में ये जो घटना घटी मुझे बहोत अच्छी तरह याद है जिसे शायद कभी भुलाया नहीं जा सकता. मै अपने किसी अविभावक के साथ कही गया हुआ था शायद किसी रिश्तेदार के यहाँ जहाँ किसी शादी थी , शादी के एक दिन पहले ही गया थे हम और मुझे किसी के घर जाना तो बहुत अच्छा लगता था वहां अपने बराबरी के बच्चोके साथ खेलना आदि. दिन बीत गया अगले दिन शादी थी शादी वाले दिन भी खूब मस्ती की  (जैसे बच्चे करते हैं ) और बिना किसी असाधारण घटना के शादी समारोह संपन्न हुआ और उसके अगले दिन हम वहा से निकलने कि तयारी करने लगे लोगों हमें दो चार दिन वहा और रुकने का बहुत आग्रह किया पर हम वहां से निकलने कि पूरी तयारी बना चुके थे बस आखरी वही अभिवादन बाकी था मै घर के ओसारे में खड़ा हुआ था एकाएक घर के दूसरी तरफ एक
आम के पेड़ के नीचे किसी को देखा जो हाथ में एक पेन लिए हुए थी और पेन के कैप को दांतों से काट रही थी और कुछ सोच रही थी, मै लगातार उनको देखता रहा और और अगले ही पलों में जैसे उनकी नज़र मुझपर पड़ी वो पूरी तरह से शरमा गयीं और घर में चली गयीं. उस दिन मैने उनको न केवल देखा बल्कि उनसे वो अटूट सम्बन्ध बन गया जो कभी टूटने वाला ही नहीं था.
मैने अपने आप को पुनर्जागृत किया और याद आया कि मै तो यहाँ से अभी निकलने वाला हु , पर मैने ये निश्चय किया कि
मुझे अभी नहीं जाना कुछ दिन यहाँ और रुकना है पर प्रश्न ये था कि हमारे घर कि प्रशाशन व्यवस्था कुछ ऐसी है कि बिना
अनुमति के कहीं आने जाने कि तो दूर , कोई ऐसा करने को सोच भी नहीं सकता , अब मुझे वहा दो चार दिन और रुकने कि
अनुमति चाहिए थी और वो आसानी से मिल गई क्योंकि स्कूल आदि में गर्मी कि छुट्टियाँ चल रही थीं. मै वह तीन दिन और
रहा पर तीन दिन मैने केवल उनको देखा बस जरा सी भी बात करने कि तो हिम्मत ही नहीं हुई , हाँ इतना जरूर पता चल
गया कि वो उसी घर कि ही रहने वाली थी जहाँ मै गया था, मै घर लौट आया, मै तो लौट आया पर अपने आपने आप को
शायद कही और ही छोड़ आया.. बिल्कुलइसे उदास रहने लगा जेसे मेरा सबकुछ खो गया हो..( मै तो अब सबसे ज्यादा आश्चर्य
इस बात का मानता हूँ कि आठ नौ साल के बालक के साथ भला ऐसा केसे हो सकता है. क्या वह एक नशा था या फिर कुछ
और... मुझे आज तक स्पष्ट नहीं हो सका) |
अब मै साधारण नहीं था अर्थात कुछ बदला हुआ सा लगने लगा था .. धीरे धीरे खेलते कूदते कुछ समय बीत गया स्कूल कि
छुट्टियाँ समाप्त हुईं अगले दो दिन बाद स्कूल प्रारंभ होने वाला था मै अगले क्लास की पढाई की तयारी में लग गया.
लेकिन मेरा मन किसी भी तरह अपने आप में नहीं था ( कहीं और ही था ) बस यही सोचता रहता की उनको एक बार और
देखने का कोई बहाना मिले...... | धीरे धीरे समय बीतता गया और मै लगभग पंद्रह या सोलह साल का हो गया और अब तो
मेरे भी अन्दर एक ह्रदय बसना था पर वो तो मै कई साल पहले ही किसी को दे चुका था |

मै तो बस एक ही दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था कि कब कोई ऐसा बहाना मिले जिससे मुझे उनके यहाँ जाने का
मौका मिले | ( में कल्पना करता हु कि यदि मेरी जगह कोई और होता तो वह बिना किसी वजह के ही वो वहां हो आता जहाँ
उसकी इच्छा होती पर मेरे सामने मेरे घर की वो अटूट प्रशाशन व्यवस्था थी जिसे तोडना शायद एक घोर अपराध से कम नहीं
था , यही वजह थी कि मै किसी अवसर का इन्तजार कर रहा था ) आखिर वो दिन आ ही गया जब उनके घर पे किसी कि
शादी पड़ी और ओर हम परिवार सहित आमंत्रित किये गए , लगभग पंद्रह दिन पहले ही हमें यह मालूम हुआ फिर क्या ..बात
थी ..मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना न रहा . मै तो बेसब्री से इंतज़ार करने लगा कि कब वो दिन आये कि उन्हें जी भर के देखूं
और मन कि कुछ बातें उनसे कही जाए ..
समय बीतता गया आखिर वो दिन भी आ गया जब हमें उनके घर जाना था. हमने तयारी कि जैसे कि शादी में जाने के लिए
करते हैं और उनके घर शादी के एक दिन पहले पहुँच गए ...वहां पहुँचते ही सभी का अभिवादन होने लगा पर मेरा तो सीना
धक् धक् कर रहा था मुझे कुछ सूझ नही रहा था कि क्या करना है .. बस मेरी दबी निगाहें किसी कि तलाश कर रही थी.
अचानक लगभग दस मिनट बाद एकाएक कोई सामने ही आ गया शायद वो वही थी जिसकी तलाश में मेरी सांसे रुक रुक के
चल रही थीं . पहली बार वो आलिंगन हुआ जब वो मुझे देखते ही मेरे सामने एक झटके से आयी और उन्होंने मेरा एक हाथ
पकड़ के और अपने दुसरे हाथ कि मुट्ठी बंद रखते हुए बड़ी उत्सुकता से पूंछा –‘’ बताओ मेरे हाथ में क्या है ?’’
मै तो बिल्कुल कुछ भी बोल नहीं पाया बल्कि घबरा गया ..(जबकि मैंने ये देखा था कि वो अपने हाथ में एक रक्षा सूत्र लेकर
आयी थी) और वो बड़े विश्वास के साथ ये बोलते हुए चली गयी कि –‘’ तुम नहीं बता सकते ‘’
मैने धीरे से मन ही में बुदबुदाया कि हाँ मै सच में नहीं बता सकता , क्योंकि अगर मै बताता भी तो यही बताता कि तुम्हारे
हाथ में तो मेरी जिंदगी है |
अगले शादी वाले दिन मैंने सोचा कि इनसे जरूर कुछ बातें होंगी पर शादी के दिन मुझपर कुछ एसी जिम्मेदारियां सौंप दी गईं
कि जबतक मै अपने कार्यो से फुर्सत पाता सभी के सभी सो चुके थे ( वो भी ) मै तो शादी का भी कोई द्रश्य न देख सका |
मै भी बहुत थक चुका था अतः मै भी सो गया. सुबह हुई मै थोडा देर से उठा बाहर देखा सभी अपने अपने काम में लग गए
थे लड़की कि बिदाई भी हो चुकी थी, सब अपने अपने घर को प्रस्थान कर रहे थे . थोड़ी ही देर में हम भी वहां से निकल लिए
आ गए घर लेकिन मन तो शांत हुआ नहीं बल्कि और आग लग गयी. पर मै करता ही क्या अपना कुछ भी बस नहीं था.
धीरे धीरे फिर से वही कारोबार स्कूल पढाई आदि ....
धीरे धीरे एक दो साल और बीत गए मेरा Intermediate भी पूरा हो गया और अब मेरी दिल्ली आने कि तयारी बनने लगी और
मै दिल्ली भी चला आया और यहाँ भी लगभग दो तीन साल बिताये. ( मै आपको इस बात का शत प्रतिशत विश्वास दिला के
कह रहा हूँ कि दिल्ली में बिताये गए दो तीन साल में लगातार दो तीन पल भी इसे नहीं बीते होंगे जिस पल में उनकी याद
मेरे ह्रदय से अलग रही हो, बस केवल यहाँ से घर जाने के और उनसे मिलकर कुछ बात करने के ही नए नए बहाने ढूंढता
रहता . मुझे तो बस एक ही बात का अफसोस था कि इतना सब होते हुए भी मैं उनसे कुछ बोल भी न सका पता नहीं
उनके अन्दर मेरे लिए क्या है क्या नहीं . पर मुझे ये पूर्ण विश्वास था कि जितना प्रेम मेरे ह्रदय में उनके लिए है उससे कही
ज्यादा उनके अन्दर मेरे लिए होगा.
आखिर वो दिन आ ही गया जब अगले दस दिन बाद दीपावली थी और मुझे घर आने को बुलाया गया , मै तो मन ही मन
अति प्रसन्न हुआ कि घर जाना है . और तयारी करने लगा और चार दिन पहले ही घर को निकल लिया . अब रस्ते भर मै

कुछ न कुछ सोचते ही जा रहा था कि घर तो जा रहा हूँ पर पता नही उनके यहाँ जाने कि अनुमति मिलेगी या नहीं .. यही
सब सोचकर मन थोडा सा घबरा भी रहा था ..
घर पहुँच गया सब से मिला जुला एक दो दिन रहा अगले दिन दीपावली आयी खूब धूम धाम से मनाये सब. अब दुसरे दिन
वहां से फिर दिल्ली वापस आने से पहले मुझे उनसे मिलना जरूरी था जिसके लिए खासकर के मै गया था ..पर उस समय तो
बिना किसी वजह के किसी के भी घर जाने की कोई अनुमति नहीं थी, मैंने बिना किसी वजह के ही किसी के घर जाने कि
अनुमति मांगी .. पर मिली नहीं बल्कि मुझे ये समझाया गया कि बिना किसी काम के कहीं भी जाने कि कोई जरुरत नहीं है
मुझे समझाए जाने का दूसरा कारण यह था कि मै अब कुछ परिपक्व हो चुका था अतः मै किसी के यहाँ अकेले जाऊ ये बात
थोड़ी जिम्मेदारी वाली थी इसी कारण से मुझे कही भी जाने कि अनुमति नहीं मिल रही थी , लेकिन मुझे तो कैसे भी करके
जाना था , मैंने इस पुरानी चली आ रही प्रशाशन व्वस्था को आज तोड़ दिया और उनके यहाँ जाने को तयार हो गया हांलाकि
मुझे किसी ने रोका नहीं पर अनुमति भी नहीं दी..
मै एक पुरानी साईकिल लेकर घर से निकल गया वहां के लिए, वहां पहुचने के लगभग दो किलोमीटर पहले ही मै साईकिल से
उतर गया और अब पैदल ही चलने लगा क्योंकि मुझे उनसे क्या बात करनी है कैसे करनी है ये मै पूरी तरह से सोच नहीं
पाया था , अतः मै और धीमी गति से चलने लगा और सोचने लगा कि केसे उनसे मिलूँगा बात भी करनी कैसे प्रारंभ होगी
इतने दिनों बाद पता नही कैसी होंगी वो यही सब सोचकर मेरे तो दिल कि धड़कने बढ़ी जा रही थीं..............
और मेरी चाल और भी धीमी होती जा रही थी .. जैसे तैसे करके मै उनके गाँव के करीब तक पहुँच ही गया , अभी उनके घर
से कुछ दूर ही था मैने देखा कि बहुत सारे लोग उस गाँव के ही तरफ बढ़ रहे थे मै धीरे धीरे उनके घर के करीब तक पहुँच
गया और देखा कि वो सारे लोग उनके घर कि ही तरफ बढ़ते जा रहे हैं , मैंने उन लोगों को देखा तो मेरी धड़कने और भी
गति से धड़कने लगी मै कुछ खुश भी हो रहा था और कुछ घबरा भी रहा था अब तो घर के बिल्कुल पास पहुँच गया और देखा
कि उनके घर पे भीड़ सी जमा हो रक्खी है और जोर जोर से रोने कि आवाज आ रही है ... ..मेरे तो रोंगटे खड़े गए एकदम
घबरा गया और सांसे जोर जोर से लगीं .. .. वहाँ इतनी भीड़ जमा हो चुकी थी कि एकदम पास से जाकर देखना तो
नामुमकिन था .. मै वहीँ रुक गया और सबको रोता हुआ देखकर किसी से कुछ पूछने की तो हिम्मत नहीं हो रही थी .. पर
कैसे भी करके हिम्मत जुटाकर एक वृद्ध से जो काफी दुखी दिखाई पड़ रहे थे , पूछा कि चाचा ये क्या हुआ है ...
वो मेरी तरफ बड़ी ही दुखी दृष्टि से कुछ देर तक देखते रहे ... फिर एक गहरी साँस लेते हुए जमीन कि तरफ देखने लगे
मै उनको लगातार प्रश्नात्मक दृष्टि से देखता रहा .... फिर उन्होंने धीरे से बोला कि क्या बताऊँ क्या हुआ .... फलां बाबू कि
एक ही लड़की थी स्कूल से आ रही थी आज .... किसी गाड़ी से टकरा गयी और ...... ‘’ इतना कहते ही वो रोने लगा ...
मुझे तो एकदम से झटका लग गया , पूरा शरीर कांपने लगा .. जैसे मेरे अन्दर किसी आग लगा दी हो .. और पहली बार मेरी
आँखों में .................
मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था मै दो चार कदम पीछे लौट आया .. और बस अपने आप को संभाल रहा था ..
कुछ घडी तक वहीँ खड़ा रहा और सोचने लगा कि मै वहां यदि गया तो उन्हें देखकर अपने आप को संभाल नहीं पाऊंगा..
इसीलिए गाँव से थोडा बाहर आकार वहीं बैठ गया और सोचने लगा कि अब मै जाऊं कहाँ घर पे जाऊं तो वहाँ क्या बोलूँगा
और यदि यहाँ गया तो और भी अनर्थ हो सकता है ... ये सब सोचते सोचते शाम हो गयी और अब रात होने लगी ,

आखिरकार मै इस निर्णय तक पहुंचा कि मुझे अब और नहीं जीना है , मेरा अब कुछ भी नहीं रहा इस दुनियां में किसके लिए
मै जिन्दा रहूँ . आज अपने आप से मै हार चुका था . वहां से उठा और उस गाँव से दो किलोमीटर पर रेल पटरी है , उसी
तरफ बढ़ने लगा .. वैसे तो रात के लगभग दस बज चुके थे पर मुझे उसका कोई प्रभाव नही था , खेतों के बीहड़ रास्तों पर भी
ऐसे चल रहा था कि जैसे दिन में भी नहीं चला जा सकता क्योंकि मै तो निश्चय कर चुका था कि अब मुझे एक भी पल और
नहीं जीना है.. मै तेज़ी से बढ़ रहा था अचानक एक झोपडी नुमा घर के पास से होकर गुजर रहा था कि किसी ने पीछे से मुझे
आवाज़ दी मैंने सुना जरूर पर रुका नहीं हाँ थोड़ी चाल धीमी हो गयी , कोई मेरी ही तरफ आ रहे थे , मै रुक गया मेरा हाथ
पकड कर बोल रहे हैं वो अरे पहचाना नहीं क्या बेटा और इतनी रात को कहाँ जा रहा है .. मैने कुछ नहीं बोला ..फिर उन्होंने
अपनी बात दोहराई .. मैंने उनको गौर से देखा .. ये तो मेरे दसवीं कक्षा के अध्यापक थे , मैने कहा कहीं नहीं बस ... मरने
जा रहा हूँ ..
क्या ..? पागल हो गया है क्या ? मैंने कहा.. हाँ फिर वे मेरी हालत को देखते ही समझ गए कि मामला क्या है ..
बोले कि अपनी पूरी परेशानी बताओ तो सही मै ये विश्वास दिलाता हु कि मै तुम्हारी हर समस्या का समाधान कर सकता हूँ .
फिर मैंने पूरी कहानी सुनाई उनको .. सुनने के बाद उन्होंने मुझे अच्छी तरह विश्वास दिलाया कि इसका पूरा हल उनके पास है
पर मुझे एक दो दिन उनके साथ रुकना पड़ेगा .. मै मान गया और वहीँ रुक गया ..रात बीती उन्होंने कहा कि अगले सुबह वो
एक ऐसे मंत्र कि सिद्धि बताएँगे कि जिससे मेरे मन को पूरी तरह शांति प्राप्त होगी , मै एक दिन और रुका रहा उनके साथ
और उस रात उन्होंने संसार के सारे उन लोगों के जीवन से परिचय कराया जिन लोगों के साथ बड़ी से बड़ी मुसीबतें आयीं पर
वे अपने आप से कभी हार नहीं माने . उन्होंने अपने खुद के बारे में भी बताया कि वे किस प्रकार अपने एकलौते बेटे के देश
की सीमा पर शहीद हो जाने को सहन कर के जीवित हैं .
सुबह हुई उन्होंने मुझे एक मंत्र का अगले दस दिन उच्चवारण करने को बताया जिससे मेरा मन शांत हो जायेगा ..
( मेरा मन तो इन सब बातों को सुनकर तो वैसे भी शांत हो चुका था ) मै घर वापस आ गया और सबको अपनी आप बीती
सुना दी ..
और धीरे धीरे फिर अपने आगे के कार्य में लग गया . चार साल बाद मेरी शादी भी हो गयी आज मै अंग्रेजी विषय का
अद्धयापक भी हूँ और मेरी एक पांच साल कि बेटी भी है जिसे मेरा डॉक्टर बनाने का सपना है बस आप सभी का आशीर्वाद
चाहिए...

धन्यवाद!

Points- 1. किसी के आने से मेरी से मेरी जिंदगी जा रही थी और किसी के आने से बच भी गयी |
2. किसी को बिना अच्छी तरह से जाने और समझे ही उसके लिए जान दे देने जैसा काम करना मेरी पूरी बेवकूफ़ी थी,
और यदि मै उसको अच्छी तरह से जानता भी होता तो भी मेरे जान देने से वो मुझे मिलने वाली नहीं |


अतः किसी भी परिस्थिति में आपा खोना लाभदायक नहीं है


1 comment:

  1. very inspiring story, i can relate my problems with it. Family / health or financial

    ReplyDelete

Featured Post

Real Feeling That can't be erased anyhow .

Hello Everyone, Once we were a Competition what we think, or what we consider about our country society etc. Make this thing appear by...